ANUTTARE (Hindi) अनुत्तरे
“अनुत्तरे”महाभारत की दो प्रमुख महिलाओं, कुंती और द्रौपदी, की अनकही पीड़ा और आंतरिक संघर्षों को उजागर करती है। यह कविता कुंती को एक माँ के रूप में दिखाती है, जो कर्तव्य और भावनाओं के बीच फंसी हुई, नैतिक दुविधाओं का सामना करती है।
द्रौपदी, लचीलापन और गरिमा की प्रतीक अथक संघर्षों के बीच भी अडिग रहती है। यह रचना वफादारी, बलिदान और सामाजिक अपेक्षाओं की कीमत पर गहन चिंतन करती है।
उनकी कहानियाँ साझा पीड़ा और आंतरिक शक्ति की प्रतिध्वनि बनती हैं। “अनुत्तरे” उन्हें धैय और सशक्तिकरण के कालातीत प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है।
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सावित्री देवी, स्वाधीनता संग्राम युग की लेखिका और कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की वंशज थीं।
उनका जन्म 30 मई 1924 को इलाहाबाद के निहालपुर गाँव में हुआ। साहित्य के प्रति उनका रुझान विद्वान परिवार और साहित्यकार मौसियों, जैसे सुभद्रा कुमारी चौहान के सान्निध्य में विकसित हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा काशी के एनी बेसेंट कॉलेज में हुई। सातवीं कक्षा में ही पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने उनकी लेखनी की प्रशंसा की।
1937 से उनकी रचनाएँ प्रकाशित होनी शुरू हुईं। उनकी कृतियों में अनुत्तरे, मृगमद, गूंगा समुद्र, अग्नि वेणु जैसे काव्य ग्रंथ, उपन्यास, नाटक, और कहानी संग्रह शामिल हैं।
वर्ष 1942 में,साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें साहित्य रत्न की उपाधि दी गयी।
1994 में अभिज्ञान परिषद ने उन्हें "साहित्य-गौरव अलंकरण" से सम्मानित किया। साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें 2008 में राधाकृष्ण पुरस्कार मिला।
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