Hasratein
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"आते हैं ग़ैब से ये मज़ामी ख्याल में, ग़ालिब सरीर ए खामा नवा ए सरोश है”। कहाँ से ये ख्याल ज़ेहन में आते हैं! ख्याल जो चैन से जीने नहीं देते। जो इंसान को हिमशिखर के पार, दरिया के परे, आसमान से ऊपर कहीं किसी ओर, किसी तक जाने को प्रेरित करते हैं। जो धरती के गर्भ में उबलते लावे से विचलित और आसमान से झरते झंझावात से भयभीत नहीं होने देते। जगा देते हैं अंतर में कुछ हसरतें जो दबती नहीं दुनिया की दीवारों से फिर। और घूमता है आदमी पागल सा बन, आँखों में कुछ सपने लिए। 'हसरतें' उन्हीं सपनों की दुनिया में आपको लेकर जाएगी, उन्हीं जुनूनी ख्यालों से रूबरू कराएगी। हसरतें न होतीं तो चाँद पर न होता इंसान, न ही कागज पर उकेरता मनमोहक दृशय, न बनाता भव्य इमारतें, न रचता सुरमई संगीत। तो देखिये प्रतिबिम्ब मेरी 'हसरतों' में अपनी ख्वाहिशों के। और जी लीजिये वो पल जो जीने बाकी हैं।
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